Sunday, January 27, 2013

उर्जा का सफर




उर्जा बहती
रहती है
कभी
भीतर भीतर
और कहीं
बाहर बाहर
प्रकट होकर
वह नृत्य
बन जाती है
कहीं और
कहीं कैनवास में
रंगों का नृत्य
दिखाती है
कहीं शब्दों को
इस तरह
गूंधती है कि
वह माला
बन जाती है
सकारात्मक ऊर्जा
एक खुश्बू
का नाम है
माता पिता
प्रिय जनों
की ममता
का नाम है
एक कविता में
एक पंक्ति ही
बहुत कुछ
कह जाती है
एक चित्र में
एक भाव भंगिमा
एक रंगत
जैसे सब कुछ
बता जाती है
प्रवीण वक्ता ने
सामने से
जब कुछ कहा
प्रवीण श्रोता ने
भीतर से
जब सब सुना
भीतर का खालीपन
इक शोर करता हुआ
बाहर आता है
उर्जा का सफर
विचारों से चलकर
आँखों से बहकर
लेखनी में आता है
लेखनी तक आता है
तब लेखन में आता है !

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