Friday, November 30, 2012

गोड मस्ट बी फनी या गोड मस्ट बी क्रेजी



गोड मस्ट बी फनी 
या गोड मस्ट बी क्रेजी
एक पिक्चर का 
टाईटिल हो सकता है
कुछ ऎसा ही याद आता है
वह मजाक करता है
मुझे हरदम 
खुश रहने को कहता है
बात बात पर मेरी 
खुशियों के गुब्बारों को 
फोड़ देता है
कहता है अब 
ताली बजाओ
जो खो गया उस 
गम को भूल जाओ
ये चारों तरफ सभी के
कुछ बाजीगर घूमते हैं
ऊपर से भरते हैं
नीचे से सुराख करते हैं
कहीं आसमान पर 
बिठाने की 
बात होती है
कहीं पहले ही 
जमीन पर 
उतारने की कोशिश
ये चारों तरफ अनेकों
मकान महल
क्या अपने हैं
इनसे कभी वो रिश्ता
जुड़ता ही नहीं
सपनो का फैयरी होम
इनमें कभी दिखता ही नहीं
फिर भी सफर तो 
तय करना ही है
इक टिमटिमाता दिया
हथेली पर धरना ही है
इधर जंगल के 
कानून हैं हर तरफ
ऊपर से अहिंसा 
भीतर हिंसा है 
हर तरफ
शेर बूढा़ हो गया
कौन उस पर दया
करता है
सब कुछ विरोधाभासी
किस तरह संभव 
हो सकता है
तुम हमसे मजाक 
करता है गोड
क्यों हमसे मजाक करता है
नैवर्दिलैस 
गोड मस्ट बी समथिंग
क्रेजी और फनी
कुछ तो बनता ही है
बेशक ये एक फिल्म का
हिस्सा है !

Friday, November 9, 2012

कौन जिम्मेदार



क्यों इतना हल्का
हो गया है रुपया
भारी हो गये
उन बहुत सारे 
लोगों के दुख :
जो गरीबी रेखा 
से नीचे हैं
रुपया, जैसे
दही हाँडी के
उस उत्सव की
तरह हो गया
जिसे गोविन्दा की
टोली में एक
साहसी लड़का
तोड़ पाता है
और गरीब की
कारगुजारी में वो
दम नहीं होता है
अमीर और गरीब
के बीच की
दूरी भी कुछ
इतनी ही
हो गयी है
ऊपर लटकी
दही हाँडी
और बहुत नीचे
खड़ा गरीब आदमी
और इस दूरी के
बीच में बढ़ती
आक्रोश आवश्यकताओं
भूख और लाचारी
की आग / गर्मी
और एक सस्पेंस 

आगे क्या होगा
कौन होगा जिम्मेदार !

Monday, November 5, 2012

तेल का खेल



काश ! ऎसा होता
तो काश वैसा होता
जब कथित त्रिकालदर्शी 
पुरुषों में चमत्कार का 
वट वृक्ष होता
देश और दुनियाँ 
की समस्याऎं
पल भर मेँ जुदा होती
आसमान तक बढ़ती महंगाई
धरती पर आ गिरती
डीजल और पेट्रौल
केन्द्र में ना आ जाते
सबको घुमाते 
ये सबको नचाते
करप्शन सूखा आपदा
सब मुस्कुराते हैं
अपनी सब गलती
उंगली उधर दिखाते हैं
ये फोर व्हीलर की फसल
हर फसल को मात दे रही है
ये कुछ जगह थोडी़ दूर तक
सड़क क्यों खाली पडी़ है
अर्थ व्यवस्था अर्थ शास्त्री उपभोक्ता
का गणित क्यों गड़बड़ा रहा है
खाली पडी़ सड़क पर बैठा
आम आदमी बड़बड़ा रहा है !