मैं हमेशा तो
ऎसी न थी
बहुत कौशिश की
मैंने कि सब कुछ
ठीक ठाक रहे
घर फैले नहीं
हर चीज अपनी
जगह पर रहे
पर यथास्थिति को
कायम करने में
असफल हो गई मैं
मैने सारे घर को
कबाड़खाना बना डाला
कपड़े, बर्तन, किताबें
खिलौने और अखबारों
को फैला डाला
अब तुम आओगे तो
बैठोगे किस जगह
कि कुछ भी तो ठीक नहीं
ठहरोगे किस जगह
अपने लिये जगह
तुम्हें खुद बनानी होगी
थोड़ी सी जहमत
थोड़ी सी धूल भी
हटानी होगी
कि सजा सजा कर
भी जिंदगी मुझसे
नहीं सजती
मैने बिखरे उलझे
फैले हालातों को
घर कर डाला
मैने ये क्या
कर डाला
मैं हमेशा तो
ऎसी न थी।
ऎसी न थी
बहुत कौशिश की
मैंने कि सब कुछ
ठीक ठाक रहे
घर फैले नहीं
हर चीज अपनी
जगह पर रहे
पर यथास्थिति को
कायम करने में
असफल हो गई मैं
मैने सारे घर को
कबाड़खाना बना डाला
कपड़े, बर्तन, किताबें
खिलौने और अखबारों
को फैला डाला
अब तुम आओगे तो
बैठोगे किस जगह
कि कुछ भी तो ठीक नहीं
ठहरोगे किस जगह
अपने लिये जगह
तुम्हें खुद बनानी होगी
थोड़ी सी जहमत
थोड़ी सी धूल भी
हटानी होगी
कि सजा सजा कर
भी जिंदगी मुझसे
नहीं सजती
मैने बिखरे उलझे
फैले हालातों को
घर कर डाला
मैने ये क्या
कर डाला
मैं हमेशा तो
ऎसी न थी।
आज शुक्रवार
ReplyDeleteचर्चा मंच पर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति ||
charchamanch.blogspot.com
समय की पहिया मजबूत है !
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