पहला सत्य
मेरा अज्ञान है
इसीलिये खोजी हूँ मैं
सभी को देखती हूँ मैं
सभी को सुनती हूँ मैं
अभी तो खोजी हूँ मैं
तर्क करने की सीमा तक
अभी नहीं पहुँची हूँ मैं
खुद को समझना है मुझे
अभी समझाने नहीं
आयी हूँ मैं
शांति अधिक हो जाये
अभी तो घबरा जाती हूँ मैं
बाहर के संगीत से जी
तब बहलाती हूँ मैं
संगीत भीतर से मेरे
जिस दिन बाहर आयेगा
उस दिन अगर मूक भी
रहूँगी मैं तो मुझको
हर कोई सुन पायेगा
उस दिन कहूंगी
खोजी हूँ मैं
सब के चेहरे पर
मुस्कुराहट लायेगा।
मेरा अज्ञान है
इसीलिये खोजी हूँ मैं
सभी को देखती हूँ मैं
सभी को सुनती हूँ मैं
अभी तो खोजी हूँ मैं
तर्क करने की सीमा तक
अभी नहीं पहुँची हूँ मैं
खुद को समझना है मुझे
अभी समझाने नहीं
आयी हूँ मैं
शांति अधिक हो जाये
अभी तो घबरा जाती हूँ मैं
बाहर के संगीत से जी
तब बहलाती हूँ मैं
संगीत भीतर से मेरे
जिस दिन बाहर आयेगा
उस दिन अगर मूक भी
रहूँगी मैं तो मुझको
हर कोई सुन पायेगा
उस दिन कहूंगी
खोजी हूँ मैं
सब के चेहरे पर
मुस्कुराहट लायेगा।
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबधाई।
ReplyDeleteखोजी
चर्चामंच पर
है आज छाई ।
खोज की यही अंतहीन कथा है....
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
khoj kee admya lalsa hee insaan ko jawant banaye rakhti hai..sunder prastti..sadar badhayee aaur apne blog per bhee amantran ke sath
ReplyDeletehttp://ashutoshmishrasagar.blogspot.in/2012/04/blog-post_9017.html
खोजी की खोज सार्थक है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सदा जारी रहती खोज....
ReplyDeleteसुंदर रचना...
बहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।