जब कभी भी
सोचा मैंने
आज कुछ
ऎसा लिखूँगी
तुम्हें पसंद आयेगा
कभी बात
बनी ही नहीं
जब मैंने लिखा
सिर्फ अपने लिये
बिना किसी की
परवाह किये
कि ये क्या
बन जायेगा
कुछ बनेगा या
नहीं भी बन पायेगा
कुआँ खोदा मैंने
अपनी कलम से
कुछ पानी भी
नजर आया
मैने पायी खुशी
मेरी प्यास भी
कुछ बुझी
मैं तृ्प्त हुवी
तुम्हें पता
भी नहीं लगा
मैं कितनी
आबाद हुई
मेरी पलकें
उठी नहीं
बस
आदाब हुई ।
सोचा मैंने
आज कुछ
ऎसा लिखूँगी
तुम्हें पसंद आयेगा
कभी बात
बनी ही नहीं
जब मैंने लिखा
सिर्फ अपने लिये
बिना किसी की
परवाह किये
कि ये क्या
बन जायेगा
कुछ बनेगा या
नहीं भी बन पायेगा
कुआँ खोदा मैंने
अपनी कलम से
कुछ पानी भी
नजर आया
मैने पायी खुशी
मेरी प्यास भी
कुछ बुझी
मैं तृ्प्त हुवी
तुम्हें पता
भी नहीं लगा
मैं कितनी
आबाद हुई
मेरी पलकें
उठी नहीं
बस
आदाब हुई ।
बिलकुल सही ।
ReplyDeleteआभार ।।
बहुत खूब...........
ReplyDeleteकूआँ खोदा कलम से..........पानी भी नज़र आया.......
देखना मीठे पानी का सोता ही फूट पड़ेगा...................
अनु
सुन्दर प्रस्तुति...
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