गहरा घना गूढ़
मगर दूर बहुत
पार नजरों के
कितना शांत
क्यों दिशांत
दिशा द्वार
अमृत धार
धरा से दूर
कहीं तिमिर
विदा मुस्कुराती
छोड़ जाती
पावन पुष्प
पदधूलि धूलि
लो प्रशान्त
लो दिगन्त
चिर अनन्त
मधुर अन्त ।
मगर दूर बहुत
पार नजरों के
कितना शांत
क्यों दिशांत
दिशा द्वार
अमृत धार
धरा से दूर
कहीं तिमिर
विदा मुस्कुराती
छोड़ जाती
पावन पुष्प
पदधूलि धूलि
लो प्रशान्त
लो दिगन्त
चिर अनन्त
मधुर अन्त ।
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ReplyDeleteaaj ke charchamanch par to nahin dikh rahi hai is pravishthi ki charcha
Deleteकुछ...गहरा घना गूढ़, मगर दूर बहुत ...... को जगह मिली तो है पर लिंक नहीं बन पाया है चर्चामंच में । आभार !!
Deleteआदरणीय शास्त्री जी
Deleteक्षमा करेंगे । अपना पहला कमेंट ह्टाना चाह रही थी । आपका ह्ट गया गलति से ।
vaah
ReplyDeletejabardast pakad hai aapki is vidha par |
aabhaar
कोई बात नहीं जी!
ReplyDeleteअब आपका लिंक आ गया है चर्चा मंच पर!
भूल से लगने से रह गया था क्योंकि आपके ब्लॉग से लाइने सलेक्ट नहीं हो रही थी, इसलिए कॉपी पेस्ट नहीं हो सका था।
अब मैनुअल ढंग से लिंक लगा दिया है।।
कष्ट हेतु क्षमा । पुन आभार।
Deleteचर्चा मंच में चर्चित होने की बधाई !
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