गहरा घना गूढ़
मगर दूर बहुत
पार नजरों के
कितना शांत
क्यों दिशांत
दिशा द्वार
अमृत धार
धरा से दूर
कहीं तिमिर
विदा मुस्कुराती
छोड़ जाती
पावन पुष्प
पदधूलि धूलि
लो प्रशान्त
लो दिगन्त
चिर अनन्त
मधुर अन्त ।
मगर दूर बहुत
पार नजरों के
कितना शांत
क्यों दिशांत
दिशा द्वार
अमृत धार
धरा से दूर
कहीं तिमिर
विदा मुस्कुराती
छोड़ जाती
पावन पुष्प
पदधूलि धूलि
लो प्रशान्त
लो दिगन्त
चिर अनन्त
मधुर अन्त ।