Tuesday, December 13, 2011

"कुछ "

गहरा घना गूढ़
मगर दूर बहुत
पार नजरों के
कितना शांत
क्यों दिशांत
दिशा द्वार
अमृत धार
धरा से दूर
कहीं तिमिर
विदा मुस्कुराती
छोड़ जाती
पावन पुष्प
पदधूलि धूलि
लो प्रशान्त
लो दिगन्त
चिर अनन्त
मधुर अन्त ।

Thursday, December 8, 2011

"दीवार"

परिस्थितियों
के गुलाम
परिस्थितियां
गुलाम किसी की
कौन जाने
कितना कुछ सच
कितना झूठ
का अंबार
कौन जाने
जानने की
तुष्टि उभरती
नहीं आँखों में
नींद सुला
देती है
सब कुछ
बस आवाज
सोती नही
स्वप्न में भी
साकार
दो तरफा
संसार
बीच की
दीवार
कहीं मैं
तो नहीं 

कौन जाने।