कुचले फूल
उभर आते
फिर से
मुस्कुराने
के लिये
मगर गंध
गुब्बारों
की तरह
आती नहीं
जा के
एक बार
अनन्त पथ
पर मोड़ों
से गुजरती
बुझती लौ
की लाली
सी तीव्र
हरबार
एक कठोर
प्रहार
समय की
लाठी से
यादों की
गठरी पर
कितना कुछ
बिखर जाता
पंखुडी़ का
गुलाल
जब जब
बिलख पड़ती
अतीत की
डाल ।
उभर आते
फिर से
मुस्कुराने
के लिये
मगर गंध
गुब्बारों
की तरह
आती नहीं
जा के
एक बार
अनन्त पथ
पर मोड़ों
से गुजरती
बुझती लौ
की लाली
सी तीव्र
हरबार
एक कठोर
प्रहार
समय की
लाठी से
यादों की
गठरी पर
कितना कुछ
बिखर जाता
पंखुडी़ का
गुलाल
जब जब
बिलख पड़ती
अतीत की
डाल ।
बहुत अच्छे भाव।
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