Thursday, January 6, 2011

धैर्य के लिये
माने जाने वाली
धरती तक
अपना आक्रोश प्रकट
करती है
उसी की संतति ही तो है
यह समाज
फिर ये क्यों न आक्रोश
प्रकट करे
भारी असमानता के लिये
भारी असंतुलन के लिये
लोक सभा में
जब भी धमाके
गूंजते हैं
कहीं गाली घूंसे तो
कहीं मेज कुर्सी टूटते हैं
पूरी पावर प्रणाली
प्रभावित होती है
किसी गरीब की
झोपडी़ जलती है
तो किसी की
सचमुच अंधेरी होती है
किसी साहब को इस
गर्मी को पचाना आता है
किसी साहब को इस
गर्मी से पसीना आता है
पचाने की बात
काली दुनिया मे
गुम हो जाती है
पसीने वाली बात
बहुत दूर तलक
जाती है
कि किसी साहब ने
गर्मी को अपने
मातहत पर उतार दिया
मातहत ने
घर पहुंच कर
अपने बीबी बच्चों को
मार दिया
बेकसूर की मार
सीधे प्रकृति
तक जाती है
युगों से धरती
संतुलन
बनाती है ।

No comments:

Post a Comment