Friday, July 2, 2010

आपने कहा
आइयेगा
 

एक कप काफी
या
एक कप
चाय
फर्माइयेगा,

कुछ लम्हे
हमारे साथ
बिताइयेगा 


मगर बात
इतनी
सी ना रही ।
आपने
खामोशी तोडी़

चाय की
चुस्कियों के
सांथ हमने
कुछ नाश्ता
भी लिया

हल्के हल्के
मुस्कुराते हुवे
आपने मेरे
भीतर के
भारीपन को
हलका किया

चाय तो एक
बहाना थी
कुछ क्षण
साथ बिताने
के लिये

कुछ आपस की
कुछ जमाने की
बातों को
दोहराने के लिये
कोरे कागज पर
लिखी इबारत
की तरह
थी चाय

ईश्वर य़ा अल्लाह की
इबादत की तरह
थी चाय

चाय एक
धर्म की
तरह थी
हम सभी
के बीच की
एक जमीन
एक पुल थी
दो किनारों
को मिलाने
के लिये ।

आपकी और
हमारी
बात छोडि़ये
कई जगह
इसकी जरुरत
होती है केवल
डायलाग भर
बनाने के लिये

चाय
मिलने के लिये
मुद्दा थी
कुछ कहने
और सुनने
के लिये
बहाना थी
चाय

चाय
खिली होगी
कभी
बागानो में
हमारे चेहरों पर
खिल उठी
थी चाय

चाय के लिये
मैने आपको
धन्यवाद दिया
ये दिन
दोहराइयेगा
इन चुस्कियों का
संगीत हमेशा
याद आयेगा

एक दिन
रंग लायेगी
जरूर
ये एक कप चाय
की सभ्यता

आप भूलियेगा नहीं
आप भी
जरूर आइयेगा
पहले आपने
कहा
अब कहा मैंने

एक कप काफी
या
एक कप चाय
फर्माइयेगा ।

1 comment:

  1. वाह...चाय,चुस्कियों का संगीत और आपकी कविता.बहुत खूब

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