Thursday, January 21, 2010

"दर्द"


बस आँखों
से बताऊंगी
होठों पर
मौन
तुम्हारी तरह
रहेंगे द्वार
बंद
नहीं भटकाऊंगी
अब और
दहन की
आग
भस्म भभूती
मस्तक पर
तेरे नहीं
लगाऊंगी
हर बार
बोल डूबे
नहीं
अतल में
तल मिला
नहीं
तू हिला
नहीं
हवाओं से
कोई
तुझे गिला
नहीं
मगर मुझे
है
तुझसे
तेरी
बेदर्दी से
हरे भरे
डालों से
झरे आँचल
में
गूंथे फूल
भरे गहरे
गजरे
किसे
पहनाऊंगी
बोल --
बोझिल दर्द
अब और
कहाँ
भटकाऊंगी ।

6 comments:

  1. अत्यंत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है! बहुत अच्छा लगा!

    ReplyDelete
  2. आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  3. आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  4. पहली बार आपकी कविताओं को पढ़ने का सुखद संयोग हुआ.संक्षिप्तता में भावों की अभिव्यक्ति और शब्दों का यथायोग्य चयन...आपकी यह शैली बहुत प्रभावशाली है.इन कविताऒं ने मन को छू लिया.

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर लिखा है आपने. लिखती रहें . शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  6. apki "daayari" ke kisi panne ka ye dard bahuch acha laga......bahut achhi rachna

    ReplyDelete