Wednesday, January 13, 2010

माँ के देहावसान पर (सन दो हज़ार)

कहाँ से शुरू करूं
माँ

आज जब तुम
सुन नहीं सकती
मैं तुम्हें
सुनाना चाहती हूं
अपनी हर बात
जो मुझे
आती है याद

वो मेरा रोकर
छुप जाना
तुम्हारे आँचल में

रो रो के तुमसे
हर जिद मनवाना

दिन भर की
थकान के बाद
रात मे भोजन
परोसते परोसते
वो तुम्हारा बीच
में ही सो जाना
और हम बच्चों
का शोर करके
तुम्हें जगाना
फिर तुम्हारा
हँसना
याद आता है
माँ

अँगोछा होने
पर भी
प्यार से
बच्चों की तरफ
अपना
पल्लू बढा़ना

पूरी जिंदगी
न्यौछावर कर दी
तुमने
अपने लगाये
बगीचे पर

जिंदगी की डोली
से मौत की डोली तक
बस दिया ही दिया तुमने

कभी बूंद बूंद
जिंदगी
तो कभी
ईश्वर लाज रखना
की सीख
अब
इस सीख को
ईश्वर
तुम ही निभाना
क्योंकी कुछ
दिखायी नहीं
देता अब
दर्पण तो
माँ की आँखो
के साँथ गया

कहाँ से शुरु करूं
माँ

2 comments:

  1. जिंदगी की डोली
    से मौत की डोली तक
    बस दिया ही दिया तुमने

    मां की जगह कोई नहीं ले सकता।

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  2. डायरी किसकी है
    पन्‍ने तो सच्‍चे हैं

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