Monday, November 5, 2012

तेल का खेल



काश ! ऎसा होता
तो काश वैसा होता
जब कथित त्रिकालदर्शी 
पुरुषों में चमत्कार का 
वट वृक्ष होता
देश और दुनियाँ 
की समस्याऎं
पल भर मेँ जुदा होती
आसमान तक बढ़ती महंगाई
धरती पर आ गिरती
डीजल और पेट्रौल
केन्द्र में ना आ जाते
सबको घुमाते 
ये सबको नचाते
करप्शन सूखा आपदा
सब मुस्कुराते हैं
अपनी सब गलती
उंगली उधर दिखाते हैं
ये फोर व्हीलर की फसल
हर फसल को मात दे रही है
ये कुछ जगह थोडी़ दूर तक
सड़क क्यों खाली पडी़ है
अर्थ व्यवस्था अर्थ शास्त्री उपभोक्ता
का गणित क्यों गड़बड़ा रहा है
खाली पडी़ सड़क पर बैठा
आम आदमी बड़बड़ा रहा है !

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