Sunday, April 15, 2012

"खोजी"

पहला सत्य
मेरा अज्ञान है
इसीलिये खोजी हूँ मैं
सभी को देखती हूँ मैं
सभी को सुनती हूँ मैं
अभी तो खोजी हूँ मैं
तर्क करने की सीमा तक
अभी नहीं पहुँची हूँ मैं
खुद को समझना है मुझे
अभी समझाने नहीं
आयी हूँ मैं
शांति अधिक हो जाये
अभी तो घबरा जाती हूँ मैं
बाहर के संगीत से जी
तब बहलाती हूँ मैं
संगीत भीतर से मेरे
जिस दिन बाहर आयेगा
उस दिन अगर मूक भी
रहूँगी मैं तो मुझको
हर कोई सुन पायेगा
उस दिन कहूंगी
खोजी हूँ मैं
सब के चेहरे पर
मुस्कुराहट लायेगा।

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...

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  2. बधाई।
    खोजी
    चर्चामंच पर
    है आज छाई ।

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  3. खोज की यही अंतहीन कथा है....

    सुंदर प्रस्तुति.

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  4. khoj kee admya lalsa hee insaan ko jawant banaye rakhti hai..sunder prastti..sadar badhayee aaur apne blog per bhee amantran ke sath
    http://ashutoshmishrasagar.blogspot.in/2012/04/blog-post_9017.html

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  5. खोजी की खोज सार्थक है
    बहुत सुंदर

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  6. सदा जारी रहती खोज....
    सुंदर रचना...

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  7. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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