Tuesday, December 13, 2011

"कुछ "

गहरा घना गूढ़
मगर दूर बहुत
पार नजरों के
कितना शांत
क्यों दिशांत
दिशा द्वार
अमृत धार
धरा से दूर
कहीं तिमिर
विदा मुस्कुराती
छोड़ जाती
पावन पुष्प
पदधूलि धूलि
लो प्रशान्त
लो दिगन्त
चिर अनन्त
मधुर अन्त ।

8 comments:

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    1. aaj ke charchamanch par to nahin dikh rahi hai is pravishthi ki charcha

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    2. कुछ...गहरा घना गूढ़, मगर दूर बहुत ...... को जगह मिली तो है पर लिंक नहीं बन पाया है चर्चामंच में । आभार !!

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    3. आदरणीय शास्त्री जी
      क्षमा करेंगे । अपना पहला कमेंट ह्टाना चाह रही थी । आपका ह्ट गया गलति से ।

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  2. vaah

    jabardast pakad hai aapki is vidha par |

    aabhaar

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  3. कोई बात नहीं जी!
    अब आपका लिंक आ गया है चर्चा मंच पर!
    भूल से लगने से रह गया था क्योंकि आपके ब्लॉग से लाइने सलेक्ट नहीं हो रही थी, इसलिए कॉपी पेस्ट नहीं हो सका था।
    अब मैनुअल ढंग से लिंक लगा दिया है।।

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    1. कष्ट हेतु क्षमा । पुन आभार।

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  4. चर्चा मंच में चर्चित होने की बधाई !

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