Sunday, April 22, 2012

"काश"

कि वही तो नहीं होता
जो चाहते हैं हम
चाहते तो बहुत कुछ है
पर वैसे होते नहीं  हम
मेरी भी चाहत यही है कि
वेद निहित जीवन जियूं
उठते ही धरती को
दिशाओं को आकाश को
नमन करूँ
लम्बी लम्बी साँस भरते हुवे
संकल्प लूँ
कि जीवन हो तो
फिर जीवन ही हो
साक्षी भाव को
सखा बना लूँ
खुद बहक भी जाऊँ
तो उसे जगा लूँ
एक कर्मयोगी की तरह
निश्काम भाव से
लगी रहूँ
काम करूं बस काम करूं
शिकायत न करूँ सचेत रहूं
अगले दिन पुनर्जन्म
की सुबह तो होगी ही
अन्यथा ना लेना इसे
आज इतनी  थक जाऊँ मैं
कि तकिया पर सर
रखते ही मर जाऊं मैं
कि तकिया पर सर
रखते ही सो जाऊं मैं
नींद की सी शांति
जहाँ चाहत नहीं होती
चाहत --->
कि वही तो नहीं होता
जो चाहते हैं हम
चाहते तो बहुत कुछ है
पर वैसे होते नहीं हम ।

Sunday, April 15, 2012

"खोजी"

पहला सत्य
मेरा अज्ञान है
इसीलिये खोजी हूँ मैं
सभी को देखती हूँ मैं
सभी को सुनती हूँ मैं
अभी तो खोजी हूँ मैं
तर्क करने की सीमा तक
अभी नहीं पहुँची हूँ मैं
खुद को समझना है मुझे
अभी समझाने नहीं
आयी हूँ मैं
शांति अधिक हो जाये
अभी तो घबरा जाती हूँ मैं
बाहर के संगीत से जी
तब बहलाती हूँ मैं
संगीत भीतर से मेरे
जिस दिन बाहर आयेगा
उस दिन अगर मूक भी
रहूँगी मैं तो मुझको
हर कोई सुन पायेगा
उस दिन कहूंगी
खोजी हूँ मैं
सब के चेहरे पर
मुस्कुराहट लायेगा।

Thursday, April 12, 2012

"हालात"

मैं हमेशा तो
ऎसी न थी
बहुत कौशिश की
मैंने कि सब कुछ
ठीक ठाक रहे
घर फैले नहीं
हर चीज अपनी
जगह पर रहे
पर यथास्थिति को
कायम करने में
असफल हो गई मैं
मैने सारे घर को
कबाड़खाना बना डाला
कपड़े, बर्तन, किताबें
खिलौने और अखबारों
को फैला डाला
अब तुम आओगे तो
बैठोगे किस जगह
कि कुछ भी तो ठीक नहीं
ठहरोगे किस जगह
अपने लिये जगह
तुम्हें खुद बनानी होगी
थोड़ी सी जहमत
थोड़ी सी धूल भी
हटानी होगी
कि सजा सजा कर
भी जिंदगी मुझसे
नहीं सजती
मैने बिखरे उलझे
फैले हालातों को
घर कर डाला
मैने ये क्या
कर डाला
मैं हमेशा तो
ऎसी न थी।

Monday, April 9, 2012

"बस सोचा "

जब कभी भी 
सोचा मैंने
आज कुछ 

ऎसा लिखूँगी
तुम्हें पसंद आयेगा
कभी बात 

बनी ही नहीं
जब मैंने लिखा 

सिर्फ अपने लिये
बिना किसी की 

परवाह किये
कि ये क्या 

बन जायेगा
कुछ बनेगा या 

नहीं भी बन पायेगा
कुआँ खोदा मैंने 

अपनी कलम से
कुछ पानी भी 

नजर आया
मैने पायी खुशी
मेरी प्यास भी 

कुछ बुझी
मैं तृ्प्त हुवी 

तुम्हें पता 
भी नहीं लगा
मैं कितनी 

आबाद हुई
मेरी पलकें 

उठी नहीं
बस 

आदाब हुई ।