Thursday, November 24, 2011

"बालक "

नन्हें मुन्ने बच्चो
तुम ईश्वर
का रूप हो
तुम जहां भी
रहते हो
तुम जहां भी
जाते हो
अपने अनोखे
आभा मण्डल से
आनन्द ही आनन्द
लुटाते हो
जिस व्यक्ति के
भीतर जो भी
मौजूद होता है
अंदर वही
झलकता है
बाहर वही
छलकता है
और वही
अंदर बाहर
का वातावरण
बन जाता है
मैने अनेक
संतो में
देखा है
वही बालक और
अनेक निश्चल
गृहस्थों में भी
मेरी कामना है
मैं भी कभी
तुम समान
बन पाऊं
नन्हे मुन्नों
भीतर असीम
आनंद रखूँ
बाहर भी
झलकाऊं।